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Explainer :ट्रांसजेंडर औरत हैं या मर्द ,झांकिए हिज़डों के जीवन में

ट्रांसजेंडर औरत हैं या मर्द ,झांकिए हिज़डों के जीवन में

ट्रांसजेंडर औरत हैं या मर्द ,झांकिए हिज़डों के जीवन में


ट्रांसजेंडर समुदाय उन व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो उस लिंग के साथ सहज महसूस नहीं करते, जिसके साथ वे जन्म लेते हैं। भारत में, ट्रांसजेंडर समुदाय को अक्सर हिजड़ा, किन्नर, अरावणी, या जोगथा जैसे नामों से जाना जाता है। यह समुदाय प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है, लेकिन आज भी इसे सामाजिक, आर्थिक और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस लेख में ट्रांसजेंडर समुदाय के विभिन्न पहलुओं, जैसे उनके प्रकार, शारीरिक अंतर, सामाजिक स्थिति, भारतीय समाज में उनकी भूमिका, ट्रांसजेंडर कानून, और प्रमुख ट्रांसजेंडर महिलाओं के प्रोफाइल पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

ट्रांसजेंडर के प्रकार और लिंग पहचान
ट्रांसजेंडर एक व्यापक शब्द है जिसमें कई श्रेणियां शामिल हैं। भारत में ट्रांसजेंडर को निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जा सकता है:
ट्रांसजेंडर पुरुष (Transman): जन्म के समय जिन्हें जैविक रूप से महिला माना गया, लेकिन वे खुद को पुरुष के रूप में पहचानते हैं।

ट्रांसजेंडर महिला (Transwoman): जन्म के समय जिन्हें जैविक रूप से पुरुष माना गया, लेकिन वे खुद को महिला के रूप में पहचानते हैं।

हिजड़ा: भारत में हिजड़ा समुदाय मुख्य रूप से उन लोगों को शामिल करता है जो पुरुष के रूप में जन्म लेते हैं, लेकिन महिला या तीसरे लिंग के रूप में पहचान रखते हैं। ये लोग समुदायों में रहते हैं और अपनी परंपराओं का पालन करते हैं।

इंटरसेक्स: वे व्यक्ति जिनके जननांग जन्म के समय पुरुष या महिला के रूप में स्पष्ट रूप से पहचाने नहीं जा सकते। इंटरसेक्स लोग ट्रांसजेंडर हो सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है।

जेंडरक्वीयर: वे लोग जो न तो पुरुष, न ही महिला, और न ही किसी निश्चित लिंग पहचान में खुद को बांधते हैं।

ट्रांसजेंडर की लिंग पहचान उनकी जैविक संरचना से भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक ट्रांसजेंडर महिला जन्म के समय पुरुष जननांगों (लिंग और अंडकोष) के साथ पैदा हो सकती है, लेकिन वह खुद को महिला के रूप में देखती है और उसी तरह व्यवहार करती है।

शारीरिक अंतर और सामान्य पुरुष-महिलाओं से भिन्नता
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का शरीर जन्म के समय सामान्य पुरुष या महिला की तरह ही होता है, लेकिन उनकी लिंग पहचान उनके जैविक लिंग से मेल नहीं खाती। सामान्य पुरुषों में लिंग, अंडकोष, और टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का उच्च स्तर होता है, जो दाढ़ी-मूंछ, गहरी आवाज और मांसपेशियों के विकास में योगदान देता है। सामान्य महिलाओं में योनि, अंडाशय, और एस्ट्रोजन हार्मोन का उच्च स्तर होता है, जो स्तन विकास और मासिक धर्म जैसी विशेषताओं को बढ़ावा देता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों में यह सामंजस्य नहीं होता। उनकी लिंग पहचान उनके मस्तिष्क की संरचना और हार्मोनल प्रभावों से प्रभावित होती है, जो जन्म के समय उनके जैविक लिंग से मेल नहीं खा सकती। कई ट्रांसजेंडर लोग अपनी पहचान के अनुरूप अपने शरीर को बदलने के लिए हार्मोन थेरेपी या सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (SRS) करवाते हैं। उदाहरण के लिए, एक ट्रांसजेंडर महिला सर्जरी के जरिए अपने लिंग को हटवाकर योनि बनवा सकती है और एस्ट्रोजन थेरेपी से स्तन विकसित कर सकती है। ट्रांसजेंडर पुरुष टेस्टोस्टेरोन थेरेपी से दाढ़ी-मूंछ उगा सकते हैं और सर्जरी से योनि को हटवाकर कृत्रिम लिंग बनवा सकते हैं। हालांकि, सभी ट्रांसजेंडर लोग सर्जरी नहीं करवाते; कुछ केवल कपड़ों, मेकअप और व्यवहार के जरिए अपनी पहचान व्यक्त करते हैं।

ट्रांसजेंडर का जन्म और माता-पिता की भूमिका
ट्रांसजेंडर का जन्म एक जटिल जैविक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार, ट्रांसजेंडर पहचान मस्तिष्क की संरचना और गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल प्रभावों से प्रभावित हो सकती है। गर्भ में भ्रूण के मस्तिष्क और शारीरिक विकास में अंतर हो सकता है, जिसके कारण व्यक्ति की लिंग पहचान उनके जैविक लिंग से भिन्न हो सकती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक है और माता-पिता की कोई जिम्मेदारी इसमें नहीं होती। माता-पिता या उनके जीन ट्रांसजेंडर बच्चे के जन्म के लिए जिम्मेदार नहीं होते। यह मानवीय और जैविक विविधता का एक हिस्सा है।

ट्रांसजेंडर की इच्छाएं और सेक्स का आनंद
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की इच्छाएं और यौन अभिविन्यास सामान्य पुरुषों और महिलाओं की तरह ही विविध होते हैं। कुछ ट्रांसजेंडर लोग पुरुषों की ओर आकर्षित होते हैं, कुछ महिलाओं की ओर, और कुछ दोनों की ओर। उनकी यौनिकता उनकी लिंग पहचान और व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करती है।

क्या ट्रांसजेंडर सेक्स का आनंद लेते हैं? हां, लेकिन यह उनकी शारीरिक स्थिति, सर्जरी, और व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करता है। जिन ट्रांसजेंडर लोगों ने सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी करवाई है, वे अपनी नई शारीरिक संरचना के साथ यौन सुख का अनुभव कर सकते हैं। जो लोग सर्जरी नहीं करवाते, वे भी अपने शरीर और रिश्तों के जरिए यौन सुख प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, सामाजिक भेदभाव, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और मानसिक तनाव के कारण कई ट्रांसजेंडर लोग अपनी यौनिकता को खुलकर व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं।

भारतीय समाज में ट्रांसजेंडर की स्थिति
भारतीय समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थिति जटिल है। प्राचीन भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को सम्मान दिया जाता था। हिंदू शास्त्रों में, जैसे रामायण और महाभारत में, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है। महाभारत में शिखंडी की कहानी एक ट्रांसजेंडर चरित्र को दर्शाती है, जो युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राचीन काल में हिजड़ा समुदाय को पवित्र माना जाता था, और वे शादी-विवाह जैसे शुभ अवसरों पर आशीर्वाद देने के लिए बुलाए जाते थे। वैदिक और पुराण साहित्य में भी तीसरे लिंग की उपस्थिति का उल्लेख है, जो भारतीय संस्कृति में उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।

हालांकि, मध्यकालीन और औपनिवेशिक काल में ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थिति बिगड़ गई। ब्रिटिश शासन के दौरान, 1871 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट और भारतीय दंड संहिता की धारा 377 ने ट्रांसजेंडर समुदाय को अपराधी के रूप में चिह्नित किया, जिसके कारण उनकी सामाजिक स्थिति गिर गई। आधुनिक भारत में भी ट्रांसजेंडर समुदाय को भेदभाव और हाशिए पर जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच सीमित है। कई ट्रांसजेंडर लोग सेक्स वर्क, भीख मांगने, या नृत्य और आशीर्वाद देने जैसे पारंपरिक कार्यों में मजबूर होते हैं, क्योंकि मुख्यधारा के रोजगार में उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता।

ट्रांसजेंडर कानून और अधिकार
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडर समुदाय को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर भी भारत के नागरिक हैं और संविधान के तहत उन्हें समान अवसर और सम्मान का अधिकार है।

कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि ट्रांसजेंडर लोगों के लिए शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए नीतियां बनाई जाएं। इस फैसले के बाद, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे पहचान दस्तावेजों में तीसरे लिंग को शामिल करने का प्रावधान किया गया।

2019 में, भारत सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम पारित किया। इस कानून के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव से सुरक्षा दी गई। कानून में यह भी प्रावधान है कि हर सरकारी और निजी प्रतिष्ठान को ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति गैर-भेदभावपूर्ण नीतियां अपनानी होंगी, जिसमें भर्ती, पदोन्नति, और बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच शामिल है। हालांकि, इस कानून की आलोचना भी हुई है, क्योंकि इसमें ट्रांसजेंडर पहचान को प्रमाणित करने की प्रक्रिया जटिल मानी गई है, और कई कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह कानून जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं है।

ट्रांसजेंडर की आजीविका और परंपराएं
भारत में हिजड़ा समुदाय की अपनी अनूठी परंपराएं और सामाजिक संरचना है। वे अक्सर समूहों में रहते हैं, जिन्हें “घराना” कहा जाता है। प्रत्येक घराने का नेतृत्व एक “गुरु” करता है, जो समुदाय के सदस्यों की देखभाल करता है और उन्हें सामाजिक नियम सिखाता है। हिजड़ा समुदाय में गुरु-चेला परंपरा बहुत महत्वपूर्ण है, जहां नए सदस्य (चेला) अपने गुरु से जीवन कौशल और परंपराएं सीखते हैं। ये समुदाय शादी, जन्म, और अन्य समारोहों में नृत्य और आशीर्वाद देकर अपनी आजीविका कमाते हैं। कुछ हिजड़े अपनी कामुकता को त्याग देते हैं और पवित्र जीवन जीने की कोशिश करते हैं।

हालांकि, सामाजिक भेदभाव के कारण ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए रोजगार के अवसर सीमित हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में ट्रांसजेंडर आबादी लगभग 4.88 लाख है, लेकिन इनमें से केवल 6% ही निजी क्षेत्र या गैर-सरकारी संगठनों में नौकरी करते हैं। अधिकांश ट्रांसजेंडर लोग कम आय (10,000-15,000 रुपये मासिक) पर काम करते हैं, और लगभग 23% लोग सेक्स वर्क में मजबूर होते हैं, जिसके कारण उन्हें एचआईवी जैसे स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

ट्रांसजेंडर का भविष्य

ट्रांसजेंडर समुदाय का भविष्य सामाजिक जागरूकता, कानूनी सुधार, और समावेशी नीतियों पर निर्भर करता है। भारत में ट्रांसजेंडर राइट्स एक्ट 2019 एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव धीमा है। भविष्य में, यदि समाज ट्रांसजेंडर लोगों को स्वीकार करे और उन्हें बराबरी का दर्जा दे, तो वे मुख्यधारा के करियर और सामाजिक जीवन में सक्रिय योगदान दे सकते हैं। शिक्षा और जागरूकता के जरिए भेदभाव को कम किया जा सकता है। सरकारी और निजी क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए नौकरी के अवसर बढ़ाने की जरूरत है, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
प्रमुख ट्रांसजेंडर महिलाओं के प्रोफाइल

भारत में कई ट्रांसजेंडर महिलाओं ने सामाजिक बाधाओं को तोड़कर विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है। यहाँ कुछ प्रमुख ट्रांसजेंडर महिलाओं के प्रोफाइल दिए गए हैं:

मनबी बंदोपाध्याय: मनबी बंदोपाध्याय भारत की पहली ट्रांसजेंडर कॉलेज प्रिंसिपल हैं। 7 जून 2015 को उन्हें पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर महिला कॉलेज की प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। 2005 में उन्होंने बंगाली साहित्य में पीएचडी हासिल की थी, जिसके साथ वे पहली ट्रांसजेंडर बनीं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। 1995 में उन्होंने पहला ट्रांसजेंडर मैगजीन “ओब-मानव” (सब-ह्यूमन) प्रकाशित किया। मनबी ने अपने बचपन में बहुत उत्पीड़न का सामना किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की।

शबनम मौसी: शबनम मौसी भारत की पहली ट्रांसजेंडर विधायक हैं। उन्होंने 2000 में मध्य प्रदेश के सोहागपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता। अपने परिवार से समर्थन न मिलने के बावजूद, शबनम ने 12 भाषाएं सीखीं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहीं। उनकी जीत ने ट्रांसजेंडर समुदाय को राजनीति में एक नई पहचान दी।

जॉयिता मंडल: जॉयिता मंडल भारत की पहली ट्रांसजेंडर जज बनीं, जिन्हें अक्टूबर 2017 में उत्तर बंगाल के लोक अदालत में नियुक्त किया गया। 29 साल की उम्र में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। जॉयिता ने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए कई संगठनों के साथ काम किया और कानून की डिग्री हासिल की। उनकी नियुक्ति ने ट्रांसजेंडर समुदाय को कानूनी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व दिया।

के. पृथिका यशिनी: पृथिका यशिनी भारत की पहली ट्रांसजेंडर पुलिस अधिकारी बनीं। उन्होंने तमिलनाडु में सब-इंस्पेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दीं। पृथिका को अपनी पहचान के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, जब उन्हें पुलिस भर्ती परीक्षा में एक अंक से फेल कर दिया गया था। उन्होंने अपनी स्कोर की पुनर्मूल्यांकन की मांग की और अंततः सफलता हासिल की। आज वे चेन्नई में सब-इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत हैं।

सत्यश्री शर्मिला: सत्यश्री शर्मिला भारत की पहली ट्रांसजेंडर वकील बनीं। जून 2018 में उन्होंने तमिलनाडु और पुदुचेरी बार काउंसिल में अपना नाम दर्ज कराया। 36 साल की उम्र में सत्यश्री ने यह उपलब्धि हासिल की। तमिलनाडु में अपने लिंग के कारण बहुत उत्पीड़न का सामना करने के बावजूद, उन्होंने कानून की पढ़ाई की और अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया।

लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी: लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी एक सामाजिक कार्यकर्ता और ट्रांसजेंडर अधिकारों की वकालत करने वाली प्रमुख हस्ती हैं। 2008 में वे एशिया प्रशांत क्षेत्र से संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व करने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनीं। उन्होंने 2007 में “अस्तित्व” ट्रस्ट की स्थापना की, जो ट्रांसजेंडर समुदाय के कल्याण के लिए काम करता है। लक्ष्मी ने अपने बचपन में बहुत उत्पीड़न का सामना किया, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान को मजबूती से अपनाया और सामाजिक बदलाव के लिए काम किया।

पद्मिनी प्रकाश: पद्मिनी प्रकाश भारत की पहली ट्रांसजेंडर प्राइम-टाइम न्यूज एंकर बनीं। 2014 में उन्हें कोयंबटूर के एक स्थानीय न्यूज चैनल लोटस टीवी में एंकर के रूप में नियुक्त किया गया। 13 साल की उम्र में अपने परिवार से अलग होने और आत्महत्या की कोशिश के बाद भी, पद्मिनी ने हिम्मत नहीं हारी और मीडिया में अपनी जगह बनाई।

जिया दास: जिया दास भारत की पहली ट्रांसजेंडर ऑपरेशन थिएटर (OT) तकनीशियन बनीं। जून 2018 में उनकी नियुक्ति हुई। कोलकाता की रहने वाली जिया को एक स्वास्थ्य उद्यमी ने प्रशिक्षण देकर इस क्षेत्र में अवसर प्रदान किया। जिया ने बताया कि अस्पताल में उनके साथ बराबरी का व्यवहार किया जाता है, जो ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक सकारात्मक कदम है।

शिक्षा और मुख्यधारा में करियर
शिक्षा के क्षेत्र में ट्रांसजेंडर समुदाय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। स्कूलों में भेदभाव और उत्पीड़न के कारण कई ट्रांसजेंडर बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। 2017 में, केरल की कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड ने 23 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नौकरी दी, लेकिन आवास की कमी के कारण 8 लोगों ने नौकरी छोड़ दी। हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों ने शिक्षा पूरी की और मुख्यधारा के करियर में सफलता हासिल की।

राजनीति में भी ट्रांसजेंडर समुदाय की भागीदारी बढ़ रही है। ममता नाम की एक ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता ने पंजाब के भुच्चो मंडी निर्वाचन क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के टिकट पर चुनाव लड़ा, और वे चुनाव लड़ने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनीं। 2022 के विधानसभा चुनावों में कई ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों ने भाग लिया, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि दिखी।

ट्रांसजेंडर समुदाय भारत में एक समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रखता है, लेकिन आधुनिक समय में उन्हें सामाजिक स्वीकृति और बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। उनकी शारीरिक और मानसिक यात्रा जटिल है, लेकिन यह प्राकृतिक और मानवीय विविधता का हिस्सा है। कानूनी सुधार, जैसे 2014 का सुप्रीम कोर्ट फैसला और 2019 का ट्रांसजेंडर राइट्स एक्ट, उनके अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन इनका प्रभावी कार्यान्वयन जरूरी है। प्रमुख ट्रांसजेंडर महिलाओं जैसे मनबी बंदोपाध्याय, शबनम मौसी, और जॉयिता मंडल ने साबित किया है कि अवसर मिलने पर ट्रांसजेंडर लोग समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। समाज को उनकी पहचान को समझने और स्वीकार करने की जरूरत है, ताकि वे सम्मानजनक और समावेशी जीवन जी सकें।

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