पंजाब के सात जिले—तरन तारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, मोगा, बठिंडा, संगरूर, और पटियाला—हरियाणा की सीमा से सटे हैं। ये जिले हरियाणा के अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, फतेहाबाद, सिरसा, और हिसार जिलों के साथ सीमा साझा करते हैं।
पंजाब के इन सीमावर्ती जिलों का हरियाणा से सटा होना एक अनूठा सांस्कृतिक मिश्रण पैदा करता है, जो पंजाब की सिख-प्रधान संस्कृति और हरियाणा की जाट व हिंदू-प्रधान संस्कृति को एकजुट करता है। यह मिश्रण विशेष रूप से पटियाला और बठिंडा जैसे शहरी क्षेत्रों में स्पष्ट है, जहाँ सैनी, अग्रवाल और कम्बोज जैसे OBC समुदायों की मजबूत उपस्थिति है। ये समुदाय दोनों राज्यों में सामाजिक और व्यापारिक प्रभाव रखते हैं, जिससे राजनीतिक दल उन्हें आकर्षित करने के लिए विशेष रणनीतियाँ बना रहे हैं।
उदाहरण के लिए, भाजपा नयाब सिंह सैनी के नेतृत्व में सैनी समुदाय और OBC मतदाताओं को लक्षित कर रही है, जो हरियाणा और पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में संयुक्त सांस्कृतिक पहचान साझा करते हैं। दूसरी ओर, आप भगवंत मान के नेतृत्व में सिख और हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि सुधारों पर जोर दे रही है। यह सांस्कृतिक समन्वय दलों को स्थानीय मुद्दों, जैसे खेती, व्यापार और रोजगार, पर केंद्रित नीतियाँ बनाने के लिए प्रेरित करता है।
तरन तारन और फाजिल्का जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में सिख संस्कृति का प्रभाव मजबूत है, जबकि पटियाला जैसे शहरी क्षेत्रों में हिंदू और OBC समुदायों का मिश्रण अधिक विविध मतदाता व्यवहार को जन्म देता है। यह मिश्रण 2027 के विधानसभा चुनावों में मतदाता ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है, क्योंकि दल सांस्कृतिक और आर्थिक मांगों को संतुलित करने की कोशिश करेंगे। उदाहरण के लिए, हरियाणा से सटे क्षेत्रों में कृषि संकट और सीमा व्यापार जैसे मुद्दे मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे भाजपा और आप के बीच प्रतिस्पर्धा तीव्र होगी। इस सांस्कृतिक मिश्रण से प्रेरित रणनीतियाँ, जैसे सामुदायिक समारोहों में भागीदारी और स्थानीय नेताओं का समावेश, दोनों दलों के लिए महत्वपूर्ण होंगी।
हरियाणा के सीमावर्ती ज़िलों में हिन्दू सिख -संस्कृतियों की झलक
2011 की जनगणना के आधार पर तरन तारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, मोगा, बठिंडा, संगरूर, और पटियाला जिलों की जनसांख्यिकी 26 मई, 2025, दोपहर 2:07 बजे IST तक निम्नलिखित है। तरन तारन की आबादी 11,19,627 है, जिसमें 87.3% ग्रामीण और 12.7% शहरी हैं। साक्षरता दर 67.8% (पुरुष 73.2%, महिला 62.1%), लिंगानुपात 900, सिख 93%, और हिंदू 5% हैं, जो सिरसा से सटा है। फिरोजपुर की आबादी 20,29,074 है, जिसमें 72.8% ग्रामीण और 27.2% शहरी हैं, साक्षरता दर 68.9% (पुरुष 75.8%, महिला 61.4%), लिंगानुपात 893, सिख 70%, और हिंदू 27% हैं, जो सिरसा और फतेहाबाद से सटा है। फाजिल्का की आबादी 11,80,483 है, जिसमें 80% ग्रामीण और 20% शहरी हैं, साक्षरता दर 65%, लिंगानुपात 897, सिख 75%, और हिंदू 20-22% हैं, जो सिरसा से सटा है। मोगा की आबादी 9,95,746 है, जिसमें 77.2% ग्रामीण और 22.8% शहरी हैं, साक्षरता दर 70.7% (पुरुष 75.3%, महिला 65.6%), लिंगानुपात 893, सिख 82%, और हिंदू 15% हैं, जो जींद से सटा है। बठिंडा की आबादी 13,88,525 है, जिसमें 70.4% ग्रामीण और 29.6% शहरी हैं, साक्षरता दर 68.3% (पुरुष 75.1%, महिला 60.9%), लिंगानुपात 868, सिख 70%, और हिंदू 28% हैं, जो सिरसा और फतेहाबाद से सटा है। संगरूर की आबादी 16,55,169 है, जिसमें 68.8% ग्रामीण और 31.2% शहरी हैं, साक्षरता दर 67.9% (पुरुष 73.8%, महिला 61.5%), लिंगानुपात 885, सिख 65%, हिंदू 24%, और मुस्लिम 10% हैं, जो जींद और कैथल से सटा है। पटियाला की आबादी 18,95,686 है, जिसमें 59.7% ग्रामीण और 40.3% शहरी हैं, साक्षरता दर 75.3% (पुरुष 80.8%, महिला 69.3%), लिंगानुपात 891, सिख 55%, और हिंदू 41% हैं, जो अंबाला और कुरुक्षेत्र से सटा है। कुल आबादी लगभग 1 करोड़ है।
भाजपा की जजर पिछड़ा वर्ग और हिन्दू मतदाताओं पर
पिछड़ा वर्ग (OBC) की औसत आबादी का अनुमान 20-25% के आधार पर लगाया गया है। 22.5% की दर से, तरन तारन में OBC आबादी ~2,51,916, फिरोजपुर में ~4,56,542, फाजिल्का में ~2,65,609, मोगा में ~2,24,043, बठिंडा में ~3,12,418, संगरूर में ~3,72,413, और पटियाला में ~4,26,529 है, औसत ~3,30,000 प्रति जिला। हिंदू आबादी तरन तारन में 5%, फिरोजपुर में 27%, फाजिल्का में 20-22%, मोगा में 15%, बठिंडा में 28%, संगरूर में 24%, और पटियाला में 41% है। ये समुदाय, विशेष रूप से OBC (जैसे सैनी और कम्बोज) और हिंदू, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। भाजपा, नयाब सिंह सैनी के नेतृत्व में, इन समुदायों को लक्षित कर रही है, जबकि आप भगवंत मान के नेतृत्व में हिंदू और OBC मतदाताओं को अपनी नीतियों (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार) से आकर्षित कर रही है। इन समुदायों की सांस्कृतिक पहचान 2027 के चुनावों में मतदाता व्यवहार को प्रभावित कर सकती है।