पाकिस्तान के रावलपिंडी में स्थित नूर खान एयरबेस, जिसे पहले पीएएफ चकलाला के नाम से जाना जाता था, के अमेरिकी नियंत्रण में होने का दावा पाकिस्तानी सुरक्षा विशेषज्ञ इम्तियाज गुल ने एक वायरल वीडियो में किया, जिसने व्यापक विवाद खड़ा कर दिया है। गुल ने दावा किया कि इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण एयरबेस पर अमेरिकी सैनिकों का कब्जा है और यहां तक कि पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को भी कुछ क्षेत्रों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी विमान बार-बार बेस पर उतर रहे हैं, लेकिन उनके माल और गतिविधियों की जानकारी नहीं दी जा रही।
गुल के अनुसार, जब एक पाकिस्तानी सैनिक ने इन गतिविधियों के बारे में पूछताछ की, तो अमेरिकी सैनिकों ने कथित तौर पर उस पर बंदूक तान दी, जिससे पाकिस्तानी सेना को कुछ हिस्सों में प्रवेश से रोक दिया गया। ये आरोप गुप्त सैन्य समझौतों या अमेरिका को विशेष पहुंच की ओर इशारा करते हैं, जिससे पाकिस्तान की संप्रभुता पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, इन दावों की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और न ही अमेरिका या पाकिस्तान सरकार ने इस पर कोई बयान जारी किया है, जिसके चलते ये दावे अभी अनुमान आधारित हैं।
अमेरिकी नियंत्रण के संभावित कारण
हालांकि गुल के दावों का कोई आधिकारिक सबूत नहीं है, कई कारक इन आरोपों को समझाने में मदद करते हैं। नूर खान एयरबेस का ऐतिहासिक महत्व रहा है, क्योंकि 2001 के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियानों के दौरान इसका उपयोग दोनों देशों की सेनाओं द्वारा किया गया था। यह बेस एफ-16 रखरखाव और अन्य सैन्य सहायता गतिविधियों के लिए लॉजिस्टिक हब रहा है, जिसके लिए अमेरिका ने 400 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की थी।
भारत के 7 मई, 2025 को ऑपरेशन सिंदूर के तहत नूर खान एयरबेस पर हमले, जो कश्मीर के पहलगाम में 26 लोगों की मौत के जवाब में थे, ने परमाणु जोखिमों की आशंका बढ़ा दी। भारतीय वायुसेना ने बेस के रनवे और मिराज व जेएफ-17 जैसे विमानों को नष्ट किया। कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया कि अमेरिकी ऊर्जा विभाग का एक विमान रेडियोधर्मी विकिरण का पता लगाने के लिए बेस पर उतरा, जिससे संकेत मिलता है कि अमेरिका ने परमाणु स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अस्थायी निगरानी या पहुंच स्थापित की हो। अमेरिका और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से सैन्य सहयोग, विशेष रूप से आतंकवाद विरोधी और खुफिया अभियानों के लिए, संभवतः इस बेस तक सीमित पहुंच प्रदान करता है। इसके अलावा, क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने और भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध के जोखिम को रोकने के लिए अमेरिका का हस्तक्षेप एक संभावित कारण हो सकता है, खासकर जब बेस पाकिस्तान की स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन (एसपीडी) के करीब है, जो 170 परमाणु हथियारों का प्रबंधन करता है।
नूर खान एयरबेस का रणनीतिक महत्व
नूर खान एयरबेस, जो रावलपिंडी में इस्लामाबाद से मात्र 10 किमी दूर स्थित है, पाकिस्तान वायुसेना का एक प्रमुख रणनीतिक केंद्र है। यह पाकिस्तान की एयर मोबिलिटी कमांड का मुख्यालय है और इसमें सी-130 हरक्यूलिस परिवहन विमान, साब 2000, और आईएल-78 हवाई ईंधन भरने वाले टैंकर जैसी महत्वपूर्ण सैन्य संपत्तियां मौजूद हैं। यह बेस न केवल सैन्य परिवहन और रसद के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वीआईपी उड़ानों और पाकिस्तान की हवाई रक्षा क्षमताओं के लिए भी उपयोगी है। बेस की निकटता पाकिस्तान की स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन (एसपीडी) से है, जो देश के अनुमानित 170 परमाणु हथियारों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे पाकिस्तान की सैन्य और परमाणु रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है। इस बेस पर किसी भी हमले को पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखता है, क्योंकि यह न केवल सैन्य संचालन बल्कि परमाणु कमांड और नियंत्रण के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, यह पूर्व बेनजीर भुट्टो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, पीएएफ कॉलेज चकलाला, और फजाइया इंटर कॉलेज नूर खान का हिस्सा है, जो इसे सैन्य और नागरिक दोनों गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण बनाता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय हमले ने इसकी रणनीतिक और प्रतीकात्मक दोनों महत्व को उजागर किया।
अमेरिका की रुचि के कारण
अमेरिका की इस बेस में रुचि इसके रणनीतिक स्थान और क्षेत्रीय अस्थिरता के जोखिमों से उत्पन्न होती है। बेस की परमाणु कमांड से निकटता के कारण, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर के बाद, अमेरिका ने परमाणु जोखिमों को रोकने के लिए निगरानी शुरू की हो सकती है। कुछ एक्स पोस्ट्स के अनुसार, भारतीय हमले के बाद रेडियोधर्मी विकिरण की आशंका के चलते अमेरिकी विमान ने बेस का दौरा किया। दक्षिण एशिया में स्थिरता बनाए रखना अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु हथियारों से लैस हैं। ऐतिहासिक रूप से इस बेस का उपयोग अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियानों के लिए लॉजिस्टिक्स हब के रूप में हुआ है, और यह संभव है कि वर्तमान में भी सीमित पहुंच बनी हो।
गुल के दावे और एक्स पर पोस्ट्स “अमेरिकी नियंत्रण” की बात करते हैं, लेकिन ये अनुमान आधारित और बिना आधिकारिक पुष्टि के हैं। “नियंत्रण” शब्द संभवतः अस्थायी निगरानी, लॉजिस्टिक्स पहुंच, या संयुक्त अभियानों को संदर्भित करता है, न कि पूर्ण स्वामित्व को। भारतीय हमले के बाद परमाणु जोखिमों को रोकने के लिए अमेरिका का हस्तक्षेप संभावित है, लेकिन पारदर्शिता की कमी ने जनता में अविश्वास को बढ़ाया है। ऐतिहासिक सहयोग और बेस का रणनीतिक महत्व अमेरिकी पहुंच को संभव बनाता है, लेकिन “नियंत्रण” शब्द अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है।
नूर खान एयरबेस पर अमेरिकी नियंत्रण का दावा इम्तियाज गुल और एक्स पोस्ट्स पर आधारित है, लेकिन बिना आधिकारिक पुष्टि के यह अनुमान आधारित है। संभावित कारणों में ऐतिहासिक सैन्य सहयोग, ऑपरेशन सिंदूर के बाद परमाणु जोखिमों की चिंता, और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने की जरूरत शामिल हैं। इस बेस का रणनीतिक महत्व इसके लॉजिस्टिक्स, परमाणु कमांड से निकटता, और क्षेत्रीय सुरक्षा में भूमिका के कारण है। अधिक जानकारी के लिए ज़ी न्यूज़ या द फाइनेंशियल एक्सप्रेस जैसे स्रोत देखे जा सकते हैं।